मूल अधिकार

परिचय:"मूल अधिकार भारतीय संविधान के भाग - 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक दिए गए हैं। जो भारतीय नागरिक को उनकी स्वतंत्रता, समानता, धर्म की स्वतंत्रता, शोषण से मुक्ति, व्यक्ति की गरिमा की रक्षा प्रदान करना है। मूल अधिकार वे अधिकार होते हैं जो हर नागरिक को संविधान द्वारा प्रदान किए जाते हैं। भारत के संविधान में ये अधिकार नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता और न्याय प्रदान करते हैं। ये अधिकार राज्य से प्राप्त होते हैं और ये मनुष्य के जीवन को सम्मानजनक बनाने के लिए अनिवार्य होते हैं।

मूल अधिकार संपूर्ण नहीं होते तथा वे सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए आवश्यक उचित प्रतिबंधों के अधीन होते हैं। जिसका अर्थ है कि राज्य उन पर उचित प्रतिबंध लगा सकता है। ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाते है। अनुच्छेद 13 में प्रावधान है कि संविधान संशोधन एक कानून नहीं है और उसे किसी भी मूल अधिकार के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है। हालाँकि, केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार 1973 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 1967 के पूर्व निर्णय को रद्द करते हुए निर्णय दिया कि मूल अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है, यदि इस तरह के किसी संशोधन से संविघान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन होता हो, तो न्यायिक समीक्षा के अधीन मूल अधिकारों को संसद के प्रत्येक सदन में दो तिहाई बहुमत से पारित संवैधानिक संशोधन के द्वारा बढ़ाया, हटाया जा सकता है या अन्यथा संशोधित किया जा सकता है। आपात स्थिति लागू होने की स्थिति में अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर शेष मूल अधिकारों में से किसी को भी राष्ट्रपति के आदेश द्वारा अस्थाई रूप से निलंबित किया जा सकता है। आपातकाल की अवधि के दौरान राष्ट्रपति आदेश देकर संवैधानिक उपचारों के अधिकारों को भी निलंबित कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सिवाय अनुच्छेद 20 व 21 के किसी भी मूल अधिकार के प्रवर्तन हेतु नागरिकों के सर्वोच्च न्यायालय में जाने पर रोक लग जाती है। संसद भी अनुच्छेद 33 के अंतर्गत कानून बना कर, उनकी सेवाओं का समुचित निर्वहन सुनिश्चित करने तथा अनुशासन के रखरखाव के लिए भारतीय सशस्त्र सेनाओं और पुलिस बल के सदस्यों के मूल अधिकारों के अनुप्रयोग को प्रतिबंधित कर सकती है। "

मूल अधिकार का उदेश्य नागरिको को राज्य के अत्याचार से बचाना और उनके जीवन की रक्षा, समानता, नागरिक की गरिमा को सुरक्षा प्रदान करना है। मूल अधिकार भारतीय संविधान का अभिन्न हिस्सा है। मूल अधिकार से किसी भी समाज की प्रगति का अनुमान लगाया जा सकता है।

मूल अधिकारों पर प्रतिबंध: सैन्य शासन के दौरान, जब मार्शल लॉ लागू होता है या देश AFSPA के अंतर्गत आता है, मूल अधिकारों पर अंकुश लगाया जा सकता है।

अनुच्छेद 12 भाग 3 के लिए ‘राज्य’ शब्द को परिभाषित करता है। तदनुसार, राज्य में निम्नलिखित शामिल है:

भारत सरकार और संसद, अर्थात केंद्र सरकार के कार्यकारी और विधायी अंग,

राज्य सरकारें और विधायिकाएँ, अर्थात राज्य सरकार के कार्यकारी और विधायी अंग,

सभी स्थानीय प्राधिकरण, अर्थात् नगरपालिकाएँ, पंचायतें, जिला बोर्ड, सुधार ट्रस्ट आदि।

अन्य सभी प्राधिकरण, अर्थात सांविधिक या गैर-सांविधिक प्राधिकरण जैसे LIC, ONGC, SAIL आदि।

इन सभी प्राधिकरणों के कार्यों को भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

वाद

CD and CM Union Ltd. fasal gang v/s State of Bihar A.I.R 2014, Patna

"इस वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि यदि किसी नागरिक के मूल अधिकार या अधिकारो का हनन होता है। तो वह नागरिक संविधान के अनुच्छेद 32 के अधीन सुप्रीम कोर्ट में याचिका दयार कर उपचार का दावा पेश कर सकता है।"

मूल अधिकारो को भारतीय संविधान में 6 भागो में विभाजित किया गया है। जो इस प्रकार है:

I) समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 तक)

II) स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22 तक)

III) शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24 तक)

IV) धर्म की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25 से 28 तक)

V) संस्कृति या शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30 तक)

VI) संवैधानिक उपचार (अनुच्छेद 32)

भारतीय संविधान में मूल रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिए गए सात मौलिक अधिकार थे। संविधान में संपति का अधिकार (अनुच्छेद 31) भी शामिल था, हालाँकि, इस अधिकार को 44वे संविधान अधिनियम 1978 द्वारा हटा दिया गया।

इसे संविधान के भाग XIX में अनुच्छेद 300-ए के तहत कानून अधिकार बना दिया गया है।

वाद

Bhai Nanu Bhai Khachar v/s State of Gujrat A.I.R 1995 SC

समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18)

समता का अधिकार का मतलब है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार और अवसर मिलना चाहिए, चाहे उनकी जाति, धर्म, लिंग, या किसी अन्य कारण से कोई भेदभाव न हो। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर इंसान को कानून के सामने बराबरी का हक मिले और सभी को न्याय मिले, बिना किसी भेदभाव के। यह वैश्विक मानवाधिकार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो विश्वभर में समानता और न्याय सुनिश्चित करता है।

संयुक्त राष्ट्र ने यह कहा है कि सभी लोग कानून के सामने समान हैं। इसका मतलब है कि यदि कोई अपराध करता है, तो उसे न्याय प्राप्त करने का वही अधिकार है जो किसी और को है, और किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।

विधि के समक्ष समता (अनुच्छेद 14 )

स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22 तक)

शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24 तक)

धर्म की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25 से 28 तक)

संस्कृति या शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30 तक)

संवैधानिक उपचार (अनुच्छेद 32)

विधि के समक्ष समता(अनुच्छेद 14) का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को कानून के सामने समान दर्जा प्राप्त होता है। इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति अपने समाजिक, आर्थिक, जातीय, धार्मिक या अन्य किसी भी कारण से कानून से भिन्न व्यवहार का पात्र नहीं हो सकता। सभी को न्याय, सुरक्षा और उनके अधिकारों के संदर्भ में समान अवसर मिलने चाहिए।

संक्षेप में, विधि के समक्ष समता का उद्देश्य यह है कि सभी व्यक्तियों को कानून के सामने समान अवसर और न्याय मिले, और किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो।

वाद

State of West Bengal v/s Anwar Ali Sarkar 1952

केस सारांश: इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार ने एक अधिनियम पारित किया था, जिसके तहत कुछ व्यक्तियों को विशेष अदालतों में परीक्षण के लिए भेजने का प्रावधान था। इस अधिनियम को चुनौती देते हुए यह सवाल उठाया गया कि क्या इस तरह का कानून अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन नहीं करता।

निर्णय: भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में यह फैसला दिया कि यदि कोई कानून किसी विशेष वर्ग को अनावश्यक रूप से विशेष रूप से भेदभावपूर्ण तरीके से प्रभावित करता है, तो यह विधि के समक्ष समता के सिद्धांत का उल्लंघन होगा। कोर्ट ने कहा कि राज्य द्वारा किए गए भेदभावपूर्ण उपचार को उचित ठहराने के लिए कोई उचित कारण नहीं था।

इस फैसले में, न्यायालय ने विधि के समक्ष समता का महत्व स्पष्ट किया और यह सुनिश्चित किया कि किसी भी कानून को लागू करते समय सभी व्यक्तियों को समान व्यवहार और समान अवसर मिलना चाहिए, चाहे उनकी जाति, धर्म, सामाजिक या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।

महत्वपूर्ण परीक्षा बिंदु:

यह केस संविधान के अनुच्छेद 14 को स्पष्ट करता है। भेदभावपूर्ण क़ानूनी प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित किया गया।